Thursday, 13 November 2014

आग से पानी बनाता हूँ

आग से पानी बनाता हूँ
मैं उसको आजमाता हूँ

बहुत बनके कलंदर फिरता हैं
इधर भेजो आईना दिखाता हूँ
ख्वाबो की राख में चिंगारी दफ़न हैं
कलेजा जलता हैं जब हाथ लगाता हूँ
कश्तीया छोड़ भाग जाते हैं
मैं तुफानो को बुलाता हूँ
कम्जर्फी की जब भीड़ देखता हूँ
मंदिरों से लौट आता हूँ

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