जाने कौन से उसूल जीये जा रहा हूँ मैं,
अपनी खताओ को दोहरा रहा हूँ मैं ....
सारी ख्वाहिशे ,सपने तमाम ,जाया हुये ,
अपने ही फैसलों से पछता रहा हूँ मैं ...
अपने ही फैसलों से पछता रहा हूँ मैं ...
उस मासूम होठो की हँसी रोकती हैं कदम ,
जबकी सदियों से खुदी में बहरा रहा हूँ मैं ...
जबकी सदियों से खुदी में बहरा रहा हूँ मैं ...
ये मुफ्लीशी,लाचारी ये समझोतों की जिंदगी ,
रोज़मर्रा की तकरीरो से उकता रहा हूँ मैं ...
रोज़मर्रा की तकरीरो से उकता रहा हूँ मैं ...
हमारी खुद्दारी भी दोस्तों में मशहूर थी,
तुम्हारी जिदो पे फिर भी झुकता रहा हूँ मैं ...
तुम्हारी जिदो पे फिर भी झुकता रहा हूँ मैं ...
खाता हूँ रोज़ ठोकरे मगर जुनुन हैं के कम नहीं ,
बुझती हुयी आग से धुआ सा उठता रहा हूँ मैं ...
बुझती हुयी आग से धुआ सा उठता रहा हूँ मैं ...
तेरी एक छुअन से जागी हजारो ख्वाहिशे ,
जबकी एहसास के रिश्ते को कबसे दबा रहा हूँ मैं ....
जबकी एहसास के रिश्ते को कबसे दबा रहा हूँ मैं ....
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