Tuesday, 20 February 2024

अब उस तरहँ के जज़्बात नहीं होते

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वक्त नहीं मिलता हालात नहीं होते

अब उस तरहँ के जज़्बात नहीं होते


जब कभीं फ़ोन उठे या ऑनलाइन दिखे

खुदको ज़ाहिर करने को अल्फ़ाज़ नहीं होते,



धीरे धीरे आँखो ने ये दिन भी दिखाये,

रो देते थे जिन बातो पर अब उदास नहीं होते


तालुख़ इस क़दर अपने तलख़ हुये,

दूर बहुत हो जाते है जब जरा पास नहीं होते.


अक़सर छूट जाते है दोस्त,दोराहों पर,

तक़रीरों में उसूलों के फ़िराक़ नहीं होते.


3 comments:

  1. बहुत अच्छी गज़ल सर।
    काफी समय बाद आपकी रचना पढ़ने मिली।
    सादर।
    ----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २३ फरवरी २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. उम्दा! वास्तविकता बतलाता हर शेर लाजवाब।

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