नये कल की बात करें
चलो एक नयीं शुरुवात करें,
कोई पूर्वाग्रह ना हो
ना कोई पूर्वाभास हो
एक नयी सुबह का
बस दोनों के मन में उत्साह हो,
सारे पुराने के चेहरे उतारे
एक शाम अजनबी बन के गुज़ारे
कुछ नये नग़मे उगाता हूँ
सपनो के शहर होके आता हूँ
तुम बस तुम बन के रहो
“मैं”फिर मैं बन जाता हूँ
किसी टपरी पर
एक ही चाय मंगाते है
बाइक पर लौंग ड्राइव पर जाते है
बरगद की ओट पर
फिर नज़र बचा के छूप जाते है,
उन शुरुवाती दिनों की
क्यों ना फिर से शुरुवात करें
नयें कल की बात करें…
वाह
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteबेहतरीन
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