नम पलकों के दरवाजे पर,
किसी ख़्वाब की गुजारिश क्यो है..
कई रोज़ बाद दिखा ये घना कोहरा,
रात के ही आग़ोश में खो गया सवेरा,
बिजलिया आँख दिखाती हैं,
मेरी सुबहे अलसायी जाती है,
बादल आने-जाने लगे है,
माल रोड' की चहल कदमी याद दिलाने लगे है,
जबके पिछली कई सर्दियां यूँही बेरंग गुज़री
कोई उम्मीद कोई बदली नही उमड़ी,
वो हुजूम दोस्तो का फ़ानी हुआ
कॉलेज के बाद सफर कितना बेमानी हुआ,
ये यू ही होना है तो फिर
मौसम की आज ये साजिस क्यो हैं
आज बारिश क्यो हैं......
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" मंगलवार 02 अप्रैल 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteवाह! सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteवाह! बहुत सुंदर 👌
ReplyDeleteअति सुन्दर रचना
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