Saturday, 6 April 2024

वो मैं नहीं था ..

 





वो मैं नहीं था ..

या ये मैं नहीं हूँ

एक वक़्त से मैं इसी उधेड़बून में हूँ

कैसे कैसे लम्हों की परते चड़ी

साप ने जैसे बदल ली काचूली

हालत बदलें उसूल बदल गये

मज़बूरी की सूली पे सब एकसाथ चड़ गये

वही मैं था

दुनिया बदलने वाला था

ये बेकसी का मंज़र उजड़ने वाला था

ख़ुद पर ग़ुरूर था

या  कम अकली में चूर था

फिर रस्तों बस्तों में खो गया

पराया शौक़ पराया रसको का हो गया

लड़ पड़ते थे जिन बातो पर

अब मलाल नहीं,

कोई ज़िद नहीं 

कोई सवाल नहीं,

वक़्त की चक्की में पिस्ता जाता हूँ

इस भीड़ में घुलता जाता हूँ

कैसे कह दूँ

तुम जो थे वही मैं हूँ,

यही मैं हूँ

या ये नहीं मैं हूँ ……

8 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना

    ReplyDelete
  2. उधेड़बुन कर लें | सुन्दर

    ReplyDelete
  3. मर्मस्पर्शी सृजन।
    परिपक्वता हृदय में सब सोख लेती है।
    बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  4. एक वक्त के बाद मलाल और जिद्द खत्म हो जाती है शायद।
    हृदयस्पर्शी रचना।

    ReplyDelete
  5. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 10 अप्रैल 2024को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. सुनील9 April 2024 at 23:04

      धन्यवाद

      Delete