Tuesday, 18 March 2025

बुड़ो की सी ख़ासी,बच्चों का सा रोना है










 बूढ़ों की सी खाँसी, बच्चों का सा रोना है

दर्द हमारा मानो सर्दियों का बिछौना है….

तक़रीरों मैं मुँह बनाकर कैसे हम रह लेते है
एक बिस्तर पर कैसे तेरा मेरा दो कोना है

सिर पटक, चीख चिल्लाकर कुछ भी तो नहीं होना है,
मर्ज़ी रख दी धार में हमने बस बहते रहना है

एक पहर आँख लगी तो देखे हमने ख़्वाब कई 
किसकी बातें झूठी हैं किसकी आँखें सोना है..

3 comments:

  1. रचना अच्छी है, वर्तनी ठीक कर लें

    बूढ़ों की सी खाँसी, बच्चों का सा रोना है
    दर्द हमारा मानो सर्दियों का बिछौना है….

    तक़रीरों मैं मुँह बनाकर कैसे हम रह लेते है
    एक बिस्तर पर कैसे तेरा मेरा दो कोना है

    सिर पटक, चीख चिल्लाकर कुछ भी तो नहीं होना है,
    मर्ज़ी रख दी धार में हमने बस बहते रहना है

    एक पहर आँख लगी तो देखे हमने ख़्वाब कई
    किसकी बातें झूठी हैं किसकी आँखें सोना है..

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    1. बहुत बहुत आभार अनीता जी 🙏🙏🙏

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