कागज़ के उन टुकडो को दिल से लगा रखा हैं ,
तेरे हरेक लब्ज़ को जिंदगी बना रखा हैं ,
वो ख़त जो तुमने मेरे नाम किये .....
तेरे हरेक लब्ज़ को जिंदगी बना रखा हैं ,
वो ख़त जो तुमने मेरे नाम किये .....
दौरे तन्हाई में वो साथ चलते हैं ,
मेरी थकानो में छाँव धरते हैं ,
सारे जहां में चाहे खिज़ा छाये
वो फूल मेरे सिराहने महकते हैं .
उस एक आग को ख़ुदमे में दबा रखा हैं ,
कागज़ के उन टुकडो को दिल से लगा रखा हैं ,
छुपकर बचाकर तुमने मज़बूरी के
जो पैगाम किये .
वो ख़त जो तुमने मेरे नाम किये….
मेरी थकानो में छाँव धरते हैं ,
सारे जहां में चाहे खिज़ा छाये
वो फूल मेरे सिराहने महकते हैं .
उस एक आग को ख़ुदमे में दबा रखा हैं ,
कागज़ के उन टुकडो को दिल से लगा रखा हैं ,
छुपकर बचाकर तुमने मज़बूरी के
जो पैगाम किये .
वो ख़त जो तुमने मेरे नाम किये….
स्याह कितनी भी काली रात हो
मुशकिल कैसे ही हालात हो
एहसास वो मुझको भीगा देते हैं
एक रंग एक मूड बना देते हैं
मेरा सारा धन उन्ही मैं हैं
ये शेर सुख़न उन्ही मैं हैं
फ़क़द एक जिश्म दुनियारी निभाता हैं
जज्बात सारे दफन उन्ही में हैं,
कागज़ों के उस दौर में
कैसे कलम से खड़े तूफान किये,
मुशकिल कैसे ही हालात हो
एहसास वो मुझको भीगा देते हैं
एक रंग एक मूड बना देते हैं
मेरा सारा धन उन्ही मैं हैं
ये शेर सुख़न उन्ही मैं हैं
फ़क़द एक जिश्म दुनियारी निभाता हैं
जज्बात सारे दफन उन्ही में हैं,
कागज़ों के उस दौर में
कैसे कलम से खड़े तूफान किये,
टेलीफोन ना मोबाइल कोई,
उस कशिश उस तड़फ
को कैसे तुमने अल्फ़ाज़ किये
वो जो खत तुमने मेरे नाम किये...
उस कशिश उस तड़फ
को कैसे तुमने अल्फ़ाज़ किये
वो जो खत तुमने मेरे नाम किये...
तरक्की कैसे मंज़र पे हमे लायी हैं
जुठ की दुनिया दिखावे की शहनाई हैं
नज़दीकी आसान निबाह मुशकिल हैं
इस इश्क़ की राह मुशकिल हैं
जिस्म हैं जज़्बात नही,
हाथों में हाथ पर साथ नही,
जुठ की दुनिया दिखावे की शहनाई हैं
नज़दीकी आसान निबाह मुशकिल हैं
इस इश्क़ की राह मुशकिल हैं
जिस्म हैं जज़्बात नही,
हाथों में हाथ पर साथ नही,
कशिश की जाँच पे मोहब्बत नही पकती,
कोई लैला अब मिलने बात करने को नही तरसती
हर शै नसीब हैं हर मुश्क हासिल हैं
ये तरक्की गज़ब की क़ाबिल है,
जबके हम हज़ार दफे पढ़ते इतराते थे
कभी दुक़ाते ,कभी सीने से लगाते थे
ख़त जो कभी मुसीबत भी बना जाते थे,
एक -एक लब्ज़ एक उम्र होते थे
कितने सारे मतलब छुपे होते थे
नादान हैं ये लोग अब क्या जाने
उस ख़ज़ाने को क्या पहचाने
कोई जब कभी याद दिलाएगा
ये दौर जरूर जान पायेगा
ये विरासत जो तुमने मेरे नाम किये
वो जो खत तुमने मेरे नाम किये...
कोई लैला अब मिलने बात करने को नही तरसती
हर शै नसीब हैं हर मुश्क हासिल हैं
ये तरक्की गज़ब की क़ाबिल है,
जबके हम हज़ार दफे पढ़ते इतराते थे
कभी दुक़ाते ,कभी सीने से लगाते थे
ख़त जो कभी मुसीबत भी बना जाते थे,
एक -एक लब्ज़ एक उम्र होते थे
कितने सारे मतलब छुपे होते थे
नादान हैं ये लोग अब क्या जाने
उस ख़ज़ाने को क्या पहचाने
कोई जब कभी याद दिलाएगा
ये दौर जरूर जान पायेगा
ये विरासत जो तुमने मेरे नाम किये
वो जो खत तुमने मेरे नाम किये...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (17-09-2019) को "मोदी का अवतार" (चर्चा अंक- 3461) (चर्चा अंक- 3454) पर भी होगी।--
ReplyDeleteचर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Very Good
ReplyDeletegate cse syllabus
वो ख़त जो उनके लिखे हैं ... उनके नाम किये हैं ...
ReplyDeleteजिंदगी की खुशबू लिए हैं ...
अच्छी रचना ...
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteखूबसूरत खतों के ज़माने बीत गये, क्या दिन हुआ करते थे, जब कागज़ की चंद लकीरों में जिंदगी समा जाती थी, सुकून और गम दोनों का साथी और सहारा ।
ReplyDeleteबहुत बहुत उम्दा रचना कहीं दूर यादों में ले जाती ।
अनुपम सृजन।
तकनीकी दुनिया मे बेशक दूरियां मिट गई है परंतु गए वक्त में दूरियों के बावजूद जो नजदीकियां होती थी वो आज के वक्त देखने को नहीं मिलती।
ReplyDeleteचिठ्टी में जैसे खुद ही आ गए हो ऐसे जज्बात हुआ करते थे
आज शब्द भी ही, प्रत्यक्ष hd में भी है लेकिन जज्बात नहीं है।
सटीक रचना
कलम से खड़े किए गए तूफां...
लाजवाब
लाजवाब और केवल लाजवाब
पधारें अंदाजे-बयाँ कोई और
उम्दा रचना
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