ठंडी-ठंडी जब हवा चली ,
तेज़ धुप में छा गयी बदली ,
तो लगा तुम आ गये ........
तेज़ धुप में छा गयी बदली ,
तो लगा तुम आ गये ........
जब बादल हमे भिगाने लगे ,
रंग-बिरंगी तितलिया उड़ी ,
भवरे गुनगुनाने लगे ,
तो लगा तुम आ गये ........
रंग-बिरंगी तितलिया उड़ी ,
भवरे गुनगुनाने लगे ,
तो लगा तुम आ गये ........
शामे जब जवान होने लगी,
धड़कने बे -इख़्तियार ,
ऑंखे परेशान होने लगी ,
खुशनुमा सहर ने जब रौशनी बिखराई ,
मुंडेर से झाकती हुयी किरन ,
खिडकियों से गुनगुनाती हवा आयी ,
तो लगा तुम आ गये ........
धड़कने बे -इख़्तियार ,
ऑंखे परेशान होने लगी ,
खुशनुमा सहर ने जब रौशनी बिखराई ,
मुंडेर से झाकती हुयी किरन ,
खिडकियों से गुनगुनाती हवा आयी ,
तो लगा तुम आ गये ........
जब कोयल गीत गाने लगी ,
मोरनी झूम इतराने लगी,
मौसम की रंगत,
साँसो में खुशबू महकाने लगी ,
पपीहे ने जब हूक उठायी,
छत से जब बारिश बुदबुदायी
तो लगा तुम आ गये ........
मोरनी झूम इतराने लगी,
मौसम की रंगत,
साँसो में खुशबू महकाने लगी ,
पपीहे ने जब हूक उठायी,
छत से जब बारिश बुदबुदायी
तो लगा तुम आ गये ........
वादी में जब कोहरे ने धुंध फैलायीं,
नन्ही मेमनी फुदक के अंदर घुस आयी,
अम्मा ने जब ठिठुर के,
सिगड़ी पे केतली चढ़ाई,
बातो में जब मुँह से भाप निकल आयी,
तो लगा तुम आ गये............!!!
नन्ही मेमनी फुदक के अंदर घुस आयी,
अम्मा ने जब ठिठुर के,
सिगड़ी पे केतली चढ़ाई,
बातो में जब मुँह से भाप निकल आयी,
तो लगा तुम आ गये............!!!
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (23-09-2019) को "आलस में सब चूर" (चर्चा अंक- 3467) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर भावाव्यक्ति है डॉ. साहब।
ReplyDeleteहर बंध बहुत बढ़िया है।
एक विनम्र निवेदन है आपसे
कृपया अपनी रचना की वर्तनी अशुद्धियों पर ध्यान दीजिए।
मार्गदर्शन के लिए आभार।
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 22 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी धन्यवाद।
Deleteजब वो करीब होते हैं तो हमारा हर लम्हा, हर मौसम, हर जर्रा उनसे जुड़ जाता है।
ReplyDeleteजब वो दूर होते है तो ये सभी मिलकर उनकी याद दिलवाते है या उनकी मौजूदगी का अहसास मात्र दिलाते हैं।
बेहतरीन कविता है।
मैं भी श्वेता जी की बात से सहमत हूँ
लफ्ज की अशुद्धियों पर गौर किया करें...जिससे आपका काव्य निखर सके।
वादी में जब कोहरे ने धुंध फैलायीं,
ReplyDeleteनन्ही मेमनी फुदक के अंदर घुस आयी,
अम्मा ने जब ठिठुर के,
सिगड़ी पे केतली चढ़ाई,
बातो में जब मुँह से भाप निकल आयी,
तो लगा तुम आ गये............!!! बेहतरीन प्रस्तुति
जब कोयल गीत गाने लगी ,
ReplyDeleteमोरनी झूम इतराने लगी,
मौसम की रंगत,
साँसो में खुशबू महकाने लगी ,
पपीहे ने जब हूक उठायी,
छत से जब बारिश बुदबुदायी
तो लगा तुम आ गये ........बेहतरीन सृजन सर
सादर
बहुत खूब कहा...
ReplyDeleteबहुत बहुत उम्दा अभिव्यक्ति एहसासों में लिपटी ।
ReplyDeleteभावपूर्ण।
पपीहे ने जब हूक उठायी,
ReplyDeleteछत से जब बारिश बुदबुदायी
तो लगा तुम आ गये ........बेहतरीन सृजन
….शब्दों की मुस्कराहट पर आपका स्वागत है
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