Sunday, 13 September 2020

दुश्मन अभी रात के भुलावे में हैं...








दुश्मन अभी रात के भुलावे में है,
ये सूरज अभी बादलों के साये में हैं,

ग्रहण की रोशनी तुम्हे अन्धा बना देगी,
ज़िन्दगी का जोड़ अभी घटाये में हैं,

ये तहज़ीब हैं जिसे कमज़ोरी समझते हो,
मेरा ज़मीर मेरे सब्र के संभाले में हैं,

मंत्री जी और साहब जोड़ तोड़ करते रहे,
कितनी देर और सुबह के उजाले में हैं,




6 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (14 सितंबर 2020) को '14 सितंबर यानी हिंदी-दिवस' (चर्चा अंक 3824) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    -रवीन्द्र सिंह यादव


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  2. बहुत सुन्दर।
    हिन्दी दिवस की अशेष शुभकामनाएँ।

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  3. बहुत सुंदर रचना

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  4. ज़फ़र साहब
    बहोत बढ़िया।
    कमाल

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