कुछ कभी अच्छा नही लगता,कुछ मेरे जैसी बात नही होती,
ज़िन्दगी तुझसे अब पहली वाली मुलाकात नही होती,
वक़्त के दरिया में तिनके सा बहा जाता हूँ,
कोई मौजे नही उठती कोई बरसात नही होती,
बेरंग बेनूर बड़ी बेशर्म सी दौड़ धूप में मसरुख होगया हूँ,
किसी के जाने से ज़िन्दगी अब उस तरह दुस्वार नही होती,
दो पाटों की चक्की में पीस रहे है दिन रात मेरे,
कोई जीत से जीत नही होती,हार से भी अब हार नही होती..
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 29 सितंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
दौड़ धूप में ही मसरूफ है जो ज़िंदगी उससे किनारा कर लेती है, जो थमकर उसकी आँखों में आँखें डालता है,हाथ बस उससे ही मिलाती है
ReplyDeleteयही सोच रहा हूँ।युही जाया ना हो जाऊं कही।
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०२-१०-२०२१) को
'रेत के रिश्ते' (चर्चा अंक-४२०५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
कुछ कभी अच्छा नही लगता,कुछ मेरे जैसी बात नही होती,
ReplyDeleteज़िन्दगी तुझसे अब पहली वाली मुलाकात नही होती,
वक़्त के दरिया में तिनके सा बहा जाता हूँ,
कोई मौजे नही उठती कोई बरसात नही होती,
सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय ।
बहुत ही उम्दा रचना!
ReplyDeleteअति सुन्दर रचना !
ReplyDeleteहर कलाप और घटना को सहजता से ले पाना मुश्किल तो है पर इस मुकाम तक पहुंचना मजबूरी भी हो सकती है ।
ReplyDeleteगहन यथार्थ पर टूटे मन का चिंतन।