भूलने की कोशिश में,तुमसे मोहब्बत की है..
ख़ुदा जाने उसका सितम क्या होगा,
अभी तो उसने बस इनायत की है,
तुमने जो आँखे वीरान कर दी थी,
यादो के सहारे हमने बसावट की है,
तेरा गम अब मुझपे कोई बोझ नही,
इस दर्द की मैंने इबादत की है,
सारी दूरियां सारे शिकवे फ़िज़ूल लगते है,
जब भी तू फ़ोन पे जरा सी हँस दी है..
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार
(9-11-21) को बहुत अनोखे ढंग"(चर्चा अंक 4242) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 10 नवंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
उम्दा अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसुंदर।
तुमने जो आँखे वीरान कर दी थी,
ReplyDeleteयादो के सहारे हमने बसावट की है,
तेरा गम अब मुझपे कोई बोझ नही,
इस दर्द की मैंने इबादत की है,
बहुत ही सुंदर व प्यारी रचना
तभी तो प्रेम का दूसरा नाम समर्पण है
ReplyDeleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteबेहतरीन।
ReplyDeleteसादर
धन्यवाद
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