Sunday, 6 September 2020

बस एक तीर जिगर के पार सा हैं कोई...







बस के ये एक दर्द दिलपे दुशवार सा हैं कोई
मेरे ही हालात ए हाल से बेज़ार  सा हैं कोई



अपना सा लगता हैं कोई  जब चोट खाता है
पोसीदा सी वजहों में मेरा किरदार सा हैं कोई,

रोज रोज की तकरारो में रब्त रिस जायेंगे,
सर्द रातों में खाँसता हुआ बीमार सा है कोई

सारे दर्द सारे शिकवों से मैं जुदा हुआँ
बस एक तीर जिगर के पार सा हैं कोई

तेरा status तेरी dp देखता रहता हूँ,
नये शहर में पुराना तलबगार सा है कोई,


9 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार ( 7 सितंबर 2020) को 'ख़ुद आज़ाद होकर कर रहा सारे जहां में चहल-क़दमी' (चर्चा अंक 3817) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    -रवीन्द्र सिंह यादव

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  2. तेरा status तेरी dp देखता रहता हूँ,
    नये शहर में पुराना तलबगार सा है कोई..वाह!सराहना से परे।
    हर बंद लाजवाब सर।
    सादर

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  3. बहुत सुन्दर

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  4. लाजवाब गजल
    वाह!!!

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  5. शानदार अस्आर हर शेर कुछ कहता सा ।
    उम्दा/ बेहतरीन!

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  6. वाह ... नए अंदाज़ के शेर हैं ...
    भाषा का बंधन दर किनार कर के लिए अच्छे शेर ...

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