दर्द के शहर में दवा आयीं हैं,
तेरे घर से उड़ती हुई हवा आयीं है,
कैसी उम्मीद अब तो तस्व्वुर ज़िंदगानी है,
उम्र सारी जवानी,बचपन में ही लुटा आयी है
ये सजावट ये भीड़ सब बेरंग है,
जब तक महफ़िल में तू नही आई है,
जाते जाते हाथ छुड़ा कर कह गयी,
बाहर को लेने आज फिज़ा आयी है,
मैं तो कहता था इतने दूर मत जाओ,
मुँह छुपाना ही अब मर्ज की दवाई है,