मेरी खिड़की से उतरती हैं
मेरे फर्श पर छा जाती हैं
एक किरण रोज़
मेरे अँधेरे खा जाती हैं....
आसमान जब बाहे फैलता हैं
घना बादल जब आँखे दिखता हैं
देखती हैं ओटो के बीच से
कोई बच्चा देखे जो आँखे मीच के,
कभी अलसाये तो लाल हो,
चाँदनी गालो पे जब गुलाल हो,
ख़ामोश हो तो नीली हैं,
शामें नारंगी सी कभी पीली हैं
वो फ़ूल पत्तो के आंसू पोछ दे,
नई रंगत उदास रातो को सुबह रोज़ दे
शामो को दुल्हन सा सुर्ख सजाती हैं
दिन में कपडों से नमी उड़ती हैं
मज़दूरों संग पसीने भी बहती हैंं
सर्दियों में सौंधी धूप बन जाती है,
एक किरण जो मेरी खिड़की से उतर आती हैं ....