कुछ अनकही बातों को बोल लेता हूँ,
कभी-कभी पुरानी डायरी खोल लेता हूँ,
कभी-कभी पुरानी डायरी खोल लेता हूँ,
हरेक लब्ज़ में लम्हो के समुन्दर है,
जाने कैसे कागज़ में सब उड़ेल देता हूँ,
किस नकाब में कौन सा चेहरा पोशीदा हैं,
बातो से लोगो का वज़न तोल लेता हूं ,
बातो से लोगो का वज़न तोल लेता हूं ,
हैरान होता हूँ जब अपनी खुदगर्ज़ी से,
कितना एहसास बचा हैं दिल में टटोल लेता हूँ,
कितना एहसास बचा हैं दिल में टटोल लेता हूँ,
क़लम कभी नये उनमान को जब जम जायें,
पुराने वक़्त से थोड़ा ख़ुदको निचोड़ लेता हूँ,
पुराने वक़्त से थोड़ा ख़ुदको निचोड़ लेता हूँ,
खुद छुपा रखता हूँ तुम्हे सब से,
ख़ुद ही कभी सबके सामने तुरपन उधेड़ देता हूँ,
ख़ुद ही कभी सबके सामने तुरपन उधेड़ देता हूँ,