आईने तोड़ देने से शक्ले नही बदला करती
सिर फोड़ने से अकले नही बदला करती,
कई बार मैंने किसानों को सूली पे रखके देखा हैं
हमारे गांव की खुदगर्ज़ फसले नही बदला करती,
लाख बार हज़ार कोशिस से जाहिर हैं
वजह बदल देने से वसले नही बदला करती,
तेरे जाने के बाद अकेले ही उसी जग़ह वक़्त बिताता हूँ
सूद अता करने से ही असले नही बदला करती,
दगा देता हैं वो बहुत सजा सवार के मासूमियत से,
गर्म जोशी से मिलने मुलज़िम की दफ़्हे नही बदला करती,