Friday, 22 September 2017

किसी दिन अपने दिल की बात बता दू तो अच्छा हो

किसी दिन अपने दिल की बात बता दू तो अच्छा हो
फासले सारे एक साथ मिटा दू तो अच्छा हो

कितने सऊर से तुम हमसे चालाकी दिखाते हो
चंद रोज और ये राज दबा दू तो अच्छा हो
ये मुसीबते जो मुझे बर्बाद भी कर सकती हैं
गर इस तपिस में खुदको फौलाद बना लू तो अच्छा हो
जो जज़्बात तकलीफ के शिवा कुछ नही दे सकते
पुराने खातों को अब आग लगा दू तो अच्छा हो

Wednesday, 20 September 2017

तुमने देखी हैं मगर किसके घर हैं ज़िन्दगी....






तुमसे बिछड़कर परेशा किस कदर हैं ज़िन्दगी,
एक सेज़ थी कभी,अब दरबदर हैं ज़िन्दगी,


किशी आँख में ख्वाब सी जो सोती थी,
हर सुकून से वो बेअसर हैं ज़िन्दगी,

कुछ एक साये तो ज़िंदा मैनें भी देखे हैं,
तुमने देखी हैं मगर किसके घर हैं ज़िन्दगी,

अपनी कमजर्फी से अब सिख रहे हो,
मैने पहले कहा था एक सफर हैं ज़िन्दगी,

छोड़ कर वो घर चौबारे कितना पछताया हूँ,
शहर के रेता बजरी ईंट और पत्थर हैं ज़िन्दगी,

वक़्त युही गुज़रता हैं जैसे गुज़र गया
 यार  फकत मुट्ठी भर हैं ज़िन्दगी,

गाँव के ग्वालन में सारी दुनियां हमारी हैं,
भोर भई मंदिर की घंटी औऱ मुरलीधर हैं ज़िन्दगी,

बुलंदियों की चाहत या हो आसमा की ख़्वाहिश
मगर जिसके पाव में जमीन हैं उसीके सर हैं ज़िन्दगी...!!!

Saturday, 9 September 2017

वो जो आँख में चुभता रहता हैं


वो जो आँख में चुभता रहता हैं
जिन्दा हैं भी,
मसलसल मरता रहता हैं.
कुछ मज़बूरी कुछ कमज़ोरी
कुछ कमशिनी में
फैसला जो हम तुम ले ना सके,
जज़्बात को कह ना सके
आंसू जो पी गए,दर्द जो सह गए,
रिश्तों के  पिजरे में तुम बंद,
एक हालात में कैद हम रह गए
अब तो बस एक एहसास सा घुटता रहता हैं
वो जो आँख में चुभता रहता हैं....

रात भर स्टेशन पर आँख रख कर
भारी दिल और खाली हाथ
लेकर जो लौटa था,
उसी दिन से जिसने पहन लिया मुखौटा था,
दस्तुरो के बिस्तर पर वो घुथता हैं,
दुनियादारी के पाटो पर पिसता हैं,
मरता हैं हर शाम
जाने कैसे हर सुबह फिर उगता हैं,
उसी कशिश उस तड़फ को तलाश करता हैं
ऐशो आराम तमाम,में जो बनवास करता हैं
अंगारो पर चलता हैं,
तलवारो पर भी कटता रहता हैं
वो जो आँख में चुभता रहता हैं....

कदम वो हमने क्यों नही उठाया,
वादा क्यों नही निभाया
होसला क्यों नही दिखया
कशिश क्या ये कम नही होगी
उम्मीदे क्या क्या खतम नही होगी
ताले ये क्या नही टूटेंगे
दरवाजे क्या नही खुलेंगे
चिंगारी क्या ये नही बुझेगी
शोले क्या ये नही भड़केगे
फिर धुँआ सा ये क्यों उठता रहता हैं
वो जो आँख में चुभता रहता हैं......