मेरी गली में वो चाँद जलवानुमा सा है,
आँखे जैसे सूरज की पहली किरण,
तेरा चेहरा जैसा दुवा सा हैं,
नदिया गिरती रही मौजे जुड़ती रही,
बोझ वही अब भी दिल पे धरा सा है
दिन निकलता हैं ना कालिया खिलती है,
चंद रोज़ से वो शोख़ खफ़ा सा है....
ख्वाहिश होनी चाहियें मुलाकात कोई दस्तूर नही,
बात भी ना करें ईतने भी तो हम दूर नही,