कई बार जो जहर हम दोनों ने साथ-साथ पीया,
चंद रोज की अनबन में तुमने जमाने को उगल दिया..
बेकशी ने जैसे तैसे बेक़रारी को जब समझा लिया,
नया बहाना बनाकर उसने फिर इरादा बदल दिया,
आज भी अपने फैसले पे हरसू पछताता हूँ,
उस मोड़ पर क्यो हमने अपना रास्ता बदल दिया,
तुम्हारा गुस्सा तुम्हारे जज्बात पर हावी था,
भीगीं आँखों से मनाया और लाल से मचल दिया
सारा शहर अंधेरो के साया में पागल बना रहा,
झूठ ने बड़ी चालाकी ने अपना चाल चल दिया....!!!