Thursday 20 August 2020

बादलन कि ओट में चंदनिया चिटकायी है.....






घिर गए बद्रा और फुहार रिमझिमायी हैं,
यार परदेश ने हवाओं संग चिट्ठी भेजवायीं हैं,


बटोही ख़ुद मय सफ़र दम तोड़ दिये
सौ बरस की दूरी तूने क्यो खिंचवाई हैं

टोहत जिया,अखियां छलक दरिया भई
बैरन असुयो रंग काजल उतार लायी हैं

देर भई सँध्या शर्म को लाल हुई,
साझ ढले जालिम ने कुंडी दी लगाई है

पाथर अंग फूल खिलेंगे सावन ये फुलवारी में,
बादलन कि ओट में चंदनिया चिटकायी है,

परेशान बिदिया रात भर फ़ोन देखत रही
तोहरी एक मुलाकात ने बेचैनी इतनी बड़ायी हैं...