Thursday 30 December 2021

लिख़ने को बस तेरा एक नाम बाक़ी है..






आग सब बुझ गयी बस राख बाक़ी है

तुम कैसे कहते हो रगो में इंक़लाब बाकी है


कोई कत्ल कोई जेल गया कोई डर के भाग गया

कौन अब शहर में इनके ख़िलाफ़ बाकी है,


जुल्म ने तो कबके इंतेहा कर ली है

बस अब  इसका हिसाब बाकी है


कभी अचानक गर मिले तो मुँह फेर लेना,

किसको क्यों जताना कि दिल कितना बेकरार बाकी है,


ख्वाब तो सब मोबाइल में देर तक देख लिये,

इस रात की आगोश में बस आँखों को आराम बाकी है,


फ़ूल कलियाँ खुशबू सब चमन में सज चुकी,

लिख़ने को बस तेरा एक नाम बाक़ी है,


तेरे मेरे बीच जो बहुत था अब थोड़ा भी नही,

खुदको छुपाने के बस मयार बाक़ी है,






Saturday 18 December 2021

इस रात का कोई किनारा नज़र नही आता,







कोई रोशनी कोई सितारा नज़र नही आता,

इस रात का कोई किनारा नज़र नही आता,



ना चाँद की थी ख़्वाहिश ना बहारों के सपने,
दो क़दम साथ चलने ही का सहारा नज़र नही आता,


क्यो दिखेंगे तुम्हे छाले,ग़रीब पावों के,
तुम शहद चाहते हो तुम्हे खारा नज़र नही आता,

बात भी करते गले भी लगाते हमे कभी,
जरा सी बात में कोई ख़सारा नज़र नही आता,

मज़बूरियों की गोद में सो गये अरमान कितने,
हमारे अंदर कोई अब हमारा नज़र नही आता,

हमारी बग़ल से देखोगे तो दिखेगा सच,
जहाँ से तुम देखते हो वहाँ से सारा नज़र नही आता,

Sunday 5 December 2021

ज़िन्दगी कही भी रही उसी की रही...









 एक कमी उम्र भर मुझी में रही,

ज़िन्दगी कही भी रही उसी की रही,


तुम इतना हक़ मुझपर जाहिर ना करो,

मैं अब भी उसी का हूँ जो मेरी कभी नही रही,



झिझक इज़हार के रास्ते आ गयी

बरहाल बर्फ़ रिश्तो मैं जमी ही रही,


वक़्त के साथ नये राब्ते परत दर चढ़ते रहे,

वो एक मोहब्बत दिल में कही दबी ही रही,


अंजुमन में फूल खिलते रहे,बहार आती रही,

फ़िज़ा उसे रही जिसे मोहब्बत ना रही,