Sunday 14 March 2021

मेरी बाहों में आ गयी एक चंचल बदली....









ओश सी चुप, धूप सी पतली,
मेरी बाहों में आ गयी एक चंचल बदली.
खुद में समा लूँ, तुझको में पा लूँ
तुझी पर गिरा दू ये भयभीत बिजली,
हृदय जो चितचोर है
क्षुब्द वादियों में यही शोर है,
अखियों की बातों में ध्यान दे,
कुछ इच्छायों को भी सम्मान दे,
दुनियादारी दूर रख,
जिया के पथ पर तन को जान दे,
प्रिय मिलन का जो एहसास है,
तनिक भी तुझे अगर विश्वास है,
रश्म की बस बेड़िया तोड़ दे,
शेष सब कठिनाई मुझे पर छोड़ दे,
दिखेगी ये दुनिया बहुत बदली-बदली,
मेरी बाहों में आ गयी एक चंचल बदली...