Friday, 27 September 2019

तेरे जाने के बाद कितना काम आए आसूँ...






वक़्त बे वक़्त हर बात पें निकल आये आँसू,
तेरे जाने के बाद कितना काम आए आसूँ



एक हम थे जो ख़ामोश ज़हर पी  गयें,
तुमने जा-जा के लोगो को दिखायें आँसू,


सारी दुनियादारी जो शाम के अंधेरे में भूल गयें,
उन गुस्ताखियों ने कितने आँख रुलाये आँसू,


आँखे सुख़ गयी,रोशनी भी जाती रही,
तुम ना आये तो किसके लियें बचायें आँसू,


बात जो ज़माने से तेरे-मेरे जहन में क़ैद थी,
पल्को से जानो के सफ़र में सब कह आये आँसू,


बाखुदा नज़र -नज़र में क्या गज़ब फ़र्क हैं,
बंद हो गयी आँख जब तुमको नज़र आये आँसू...

Sunday, 22 September 2019

तो लगा तुम आ गये......!!!







ठंडी-ठंडी जब हवा चली ,
तेज़ धुप में छा गयी बदली ,
तो लगा तुम आ गये ........


जब बादल हमे भिगाने लगे ,
रंग-बिरंगी तितलिया उड़ी ,
भवरे गुनगुनाने लगे ,
तो लगा तुम आ गये ........

शामे जब जवान होने लगी,
धड़कने बे -
इख़्तियार ,
ऑंखे परेशान होने लगी ,
खुशनुमा सहर ने जब रौशनी बिखराई ,
मुंडेर से झाकती हुयी किरन ,
खिडकियों से गुनगुनाती हवा आयी ,
तो लगा तुम आ गये ........

जब कोयल गीत गाने लगी ,
मोरनी झूम इतराने लगी,
मौसम की रंगत,
साँसो में खुशबू महकाने लगी ,
पपीहे ने जब हूक उठायी,
छत से जब बारिश बुदबुदायी

तो लगा तुम आ गये ........

वादी में जब कोहरे ने धुंध फैलायीं,
नन्ही मेमनी फुदक के अंदर घुस आयी,
अम्मा ने जब ठिठुर के,
सिगड़ी पे केतली चढ़ाई,
बातो में जब मुँह से भाप निकल आयी,
तो लगा तुम आ गये............!!!

Sunday, 15 September 2019

वो ख़त जो तुमने मेरे नाम किये .....







कागज़ के उन टुकडो को दिल से लगा रखा हैं ,
तेरे हरेक लब्ज़ को जिंदगी बना रखा हैं ,
वो ख़त जो तुमने मेरे नाम किये .....


दौरे तन्हाई में वो साथ चलते हैं ,
मेरी थकानो में छाँव धरते  हैं ,
सारे जहां में चाहे खिज़ा छाये
वो फूल मेरे सिराहने महकते हैं .
उस एक आग को ख़ुदमे में दबा रखा हैं ,
कागज़ के उन टुकडो को दिल से लगा रखा हैं ,
छुपकर बचाकर तुमने मज़बूरी के
जो पैगाम किये .
वो ख़त जो तुमने मेरे नाम किये….

स्याह कितनी भी काली रात हो
मुशकिल कैसे ही हालात हो
एहसास वो मुझको भीगा देते हैं
एक रंग एक मूड बना देते हैं
मेरा सारा धन उन्ही मैं हैं
ये शेर सुख़न उन्ही मैं हैं
फ़क़द एक जिश्म दुनियारी निभाता हैं
जज्बात सारे दफन उन्ही में हैं,
कागज़ों के उस दौर में
कैसे कलम से खड़े तूफान किये,
टेलीफोन ना मोबाइल कोई,
उस कशिश उस तड़फ
को कैसे तुमने अल्फ़ाज़ किये
वो जो खत तुमने मेरे नाम किये...

तरक्की कैसे मंज़र पे हमे लायी हैं
जुठ की दुनिया दिखावे की शहनाई हैं
नज़दीकी आसान निबाह मुशकिल हैं
इस इश्क़ की राह मुशकिल हैं
जिस्म हैं जज़्बात नही,
हाथों में हाथ पर साथ नही,
कशिश की जाँच पे मोहब्बत नही पकती,
कोई लैला अब मिलने बात करने को नही तरसती
हर शै नसीब हैं हर मुश्क हासिल हैं
ये तरक्की गज़ब की क़ाबिल है,
जबके हम हज़ार दफे पढ़ते इतराते थे
कभी  दुक़ाते ,कभी सीने से लगाते थे
ख़त जो कभी मुसीबत भी बना जाते थे,
एक -एक लब्ज़ एक उम्र होते थे
कितने सारे मतलब छुपे होते थे
नादान हैं ये लोग अब क्या जाने
उस ख़ज़ाने को क्या पहचाने
कोई जब कभी याद दिलाएगा
ये दौर जरूर जान पायेगा
ये विरासत जो तुमने मेरे नाम किये
वो जो खत तुमने मेरे नाम किये...

Sunday, 8 September 2019

मेरी क़लम से फिर इंक़लाब लिखाते क्यो हो....








फ़िज़ूल की बातों में सर अपना खपाते क्यो हो,
उलझने किसको नही इतना जताते क्यो हो,



गुमनामी के अंधेरो में खो जायूँगा कभी राख़ बनकर,
इतनी शिद्दत से मेरा नाम अपने साथ लिखवाते क्यो हो,


मुश्किल हैं मेरे साथ रहना मग़रूर बेकार हूँ मैं,
फिर नंम्बर बदल फोन की घण्टियाँ बजाते क्यो हो,


यहां भीड़ हैं गंदगी हैं लोगो को तहज़ीब नही,
इतना परेसा हो तो इन बस्तियों में आते क्यो हो,


गर कज़ोर गरीबो मज़लूमो का कोई वजूद नही,
हमारे जुलूसों लाल सलामो से इतना डर जाते क्यो हो,


जानते हो,मसले मंदिरो मस्ज़िदों के कुछ नही देने वाले
फिर वोटरों को हर बार झुठ बहलाते क्यो हो,



जबके तुमने शहादत "आज़ाद "भगत की भी जाया की
मेरी क़लम से फिर  इंक़लाब लिखाते क्यो हो.....!!!

Thursday, 5 September 2019

खुदकी खुद से एक जंग सी जारी रही....





मुझ पर जाने कौन सी बेक़रारी रही,
खुदकी खुद से एक जंग सी जारी रही,


तुमने कई बार मुझकों ठुकरा दिया,
एक उम्मीद तेरे इंतज़ार में क्यो ठाड़ी रही,

मेरे घर मे रौनको का बसेरा रहा,
बेटियां मेरी आँगन की दुलारी रही,

सिर्फ औरो की चोरियो पे आवाज़ उठाते हैं,
बस इतनी बाकी हममें वफ़ादारी रही,

इतने आँसू मै खामोशी से पी गया,
उम्र भर मेरी जुबान ख़ारी रही...