Monday, 8 September 2025

ना थे जो सुलझानें वो मसले कब सुलझा सके..










तुम हमें समझ ना सके ना हम तुमको समझा सके,
ना थे जो सुलझानें वो मसले कब सुलझा सके,

यही था गर होना नसीब में, तो हो के रहा,
गले लगाने उठे थे हाथ भी न मिला सके,

थक कर हार गये सारे जुगनू अंधेरों से,
सूरज का वादा करके चिंगारी भी ना दिखा सके

देर रात तक सोचता रहा मैं ख्यालो में,
मिटा दिया चिरागों को जब उजालो से ना लड़ सके ,

बंदिश लगा के होठो पर जब कुछ न हुआ
कुचल दिया गाड़ी से,जिनकी आवाज़ ना दबा सके..