Sunday, 3 November 2019

मेरी इस प्यास की कही तो ताब होगीं....









मेरी इस प्यास की कही तो ताब होगीं,
एक चिंगारी की कही आग होगीं,


मेरी हर बूँद में,इश्क़ का समुन्दर हैं,
प्यासा रख कर,तू भी कहाँ आबाद होगीं,

मत करो फ़ोन बारहां नंबर बदल-बदल के,
हमको-तुमको तकलीफें बेहिसाब होगीं,

खामोश देखता हूँ मैं तेरी बदगुमानिया,
कभी तो हद से पार मेरी बर्दास्त होगीं,

मेरे सच को तुम यू ज़िंदा दफना नही सकते,
एक रोज़ कब्रे खोद,फिर शिनाख्त होगीं,

उसे हो,तो हो के रहे घमंड अपनी दौलत पे,
ख़ाक से बनी थी दुनिया,रिस के फिर ख़ाक होगीं,

ग़लतफ़हमी का मट्ठा इतना जड़ो ने पी लिया,
अब नही लगता कि बस्तियां फिर शाद होगीं...

5 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(०४ -११ -२०१९ ) को "जिंदगी इन दिनों, जीवन के अंदर, जीवन के बाहर"(चर्चा अंक
    ३५०९ )
    पर भी होगी
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
    महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  2. .. वाह बहुत ही बेहतरीन लिखा आपने
    गलतफहमी का मट्ठा जड़ों ने पी लिया
    अब नहीं लगता बस्तियां फिर से शद होगी..!!

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 04 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. आपके ब्लॉग से बहुत दिनों बाद कोई रचना आयी है। बहुत ही शानदार रचना है ये।
    ग़ज़ल है या गजलनुमा रचना कुछ भी हो मगर भाव एक दम सदे हुए है। मॉडर्न रचना में शामिल ये रचना कमाल है।
    अगर इसे गजल कहते हैं तो काफिये की जानकारी तो नहीं है मुझे फिर भी काफ़िया गलत हो रहा है शायद।

    लिखते रहे।

    यहाँ स्वागत है 👉👉 कविता 

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  5. उसे हो,तो हो के रहे घमंड अपनी दौलत पे,
    ख़ाक से बनी थी दुनिया,रिस के फिर ख़ाक होगीं,


    वाह बेहतरीन.....पहली बार पढ़ा आपको अच्छा लगा

    शुभकामनाएं

    मेरे ब्लॉग पर भी आइएगा 🙏

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