आग सब बुझ गयी बस राख बाक़ी है
तुम कैसे कहते हो रगो में इंक़लाब बाकी है
कोई कत्ल कोई जेल गया कोई डर के भाग गया
कौन अब शहर में इनके ख़िलाफ़ बाकी है,
जुल्म ने तो कबके इंतेहा कर ली है
बस अब इसका हिसाब बाकी है
कभी अचानक गर मिले तो मुँह फेर लेना,
किसको क्यों जताना कि दिल कितना बेकरार बाकी है,
ख्वाब तो सब मोबाइल में देर तक देख लिये,
इस रात की आगोश में बस आँखों को आराम बाकी है,
फ़ूल कलियाँ खुशबू सब चमन में सज चुकी,
लिख़ने को बस तेरा एक नाम बाक़ी है,
तेरे मेरे बीच जो बहुत था अब थोड़ा भी नही,
खुदको छुपाने के बस मयार बाक़ी है,
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(३१-१२ -२०२१) को
'मत कहो अंतिम महीना'( चर्चा अंक-४२९५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत खूब
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
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