Thursday, 30 December 2021

लिख़ने को बस तेरा एक नाम बाक़ी है..






आग सब बुझ गयी बस राख बाक़ी है

तुम कैसे कहते हो रगो में इंक़लाब बाकी है


कोई कत्ल कोई जेल गया कोई डर के भाग गया

कौन अब शहर में इनके ख़िलाफ़ बाकी है,


जुल्म ने तो कबके इंतेहा कर ली है

बस अब  इसका हिसाब बाकी है


कभी अचानक गर मिले तो मुँह फेर लेना,

किसको क्यों जताना कि दिल कितना बेकरार बाकी है,


ख्वाब तो सब मोबाइल में देर तक देख लिये,

इस रात की आगोश में बस आँखों को आराम बाकी है,


फ़ूल कलियाँ खुशबू सब चमन में सज चुकी,

लिख़ने को बस तेरा एक नाम बाक़ी है,


तेरे मेरे बीच जो बहुत था अब थोड़ा भी नही,

खुदको छुपाने के बस मयार बाक़ी है,






3 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(३१-१२ -२०२१) को
    'मत कहो अंतिम महीना'( चर्चा अंक-४२९५)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. बेहतरीन प्रस्तुति

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