Wednesday, 26 January 2022









ख्वाहिश होनी चाहियें मुलाकात कोई दस्तूर नही,

बात भी ना करें ईतने भी तो हम दूर नही,


और लोग है जो जन्नत के छलावे में जिंदा है,
मेरी ख़ुदी को  आज भी ये मंज़ूर नही,

बेकशी के घर मे मुफ़लिसी का साया है,
परेशा जरूर हूँ मगर मजबूर नही,

कभी बात करो तो कुछ समझ आऊं,
थोड़ा मुश्किल हूँ  लेकिन मगरूर नही,

समझे नही तो मत पढ़ो मुझे  महफ़िल में,
मुनासिब होना चाहता हूँ मैं मशहूर नही,

4 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (२७-०१ -२०२२ ) को
    'गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ....'(चर्चा-अंक-४३२३)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. बहुत ही बढ़िया कहा।

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  3. सुंदर अभिव्यक्ति।

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