बारिशो की बूदो का क्या गज़ब फ़साना हैं
प्यास भी जगाना हैं आग भी लगाना हैं
तुम्हारे ही नखरे हैं तुम्हारा ही बहाना हैं
कल हो न हो आज तुमने अंगुलियों पे नचाना हैं
दरिया रुक नही सकता आसमा झुक नही सकता
दुनियादारी तो तुम्हारा सब बहाना हैं
हूर की सी सूरत हैं मिश्रियो सी बाते हैं
आंख भी नशीली चाल तो रिन्दाना हैं
तौबा इस दुनिया का ये भी क्या रिवाज़ाना हैं
अमीरे शौक के जलशे हैं हमारी भूख को एक दाना हैं
क्यों मैं वक़्त की दौड़ में पीछे रह गया
क्यों हिम्मतो के आगे बदकिश्मती को आजाना हैं
प्यास भी जगाना हैं आग भी लगाना हैं
तुम्हारे ही नखरे हैं तुम्हारा ही बहाना हैं
कल हो न हो आज तुमने अंगुलियों पे नचाना हैं
दरिया रुक नही सकता आसमा झुक नही सकता
दुनियादारी तो तुम्हारा सब बहाना हैं
हूर की सी सूरत हैं मिश्रियो सी बाते हैं
आंख भी नशीली चाल तो रिन्दाना हैं
तौबा इस दुनिया का ये भी क्या रिवाज़ाना हैं
अमीरे शौक के जलशे हैं हमारी भूख को एक दाना हैं
क्यों मैं वक़्त की दौड़ में पीछे रह गया
क्यों हिम्मतो के आगे बदकिश्मती को आजाना हैं
दरिया रुक नही सकता आसमा झुक नही सकता
ReplyDeleteदुनियादारी तो तुम्हारा सब बहाना हैं ..
सच खा है इस शेर के माध्यम से जफ़र साहब ... लाजवाब ग़ज़ल है ...
thanks sir...
ReplyDeleteबारिशो की बूदो का क्या गज़ब फ़साना हैं
ReplyDeleteप्यास भी जगाना हैं आग भी लगाना हैं
jabardast, mubarak ho