Monday, 29 December 2014

तुम्हारे दिल मैं कसक वही हैं इधर भी वही इरादा मेरा....

तुम्हारे दिल मैं कसक वही हैं इधर भी वही इरादा मेरा
तेरी आँखे मचल रही हैं बेक़रार मन नादां मेरा

मिले थे जबसे नयन तुमसे दिल हैं जोगी बावरा सा
ये कसक मेरी हई न पूरी हैं जुनून आधा मेरा

होंगे बहुत सारे प्रेमी तुम्हारे मुझसे बेहतर मुझसे अच्छे
सच कहूँगा जान तुमसे एक फूल सा दिल सादा मेरा

एक हैं मंदिर एक ही मूरत और कोई ना हमको जचता
तू ही शिव हैं तू ही सूंदर तू ही मोहन राधा मेरा

3 comments:

  1. वाह बहुत कमाल के शेर हैं इस ग़ज़ल में जफ़र साहब ... आखरी शेर तो प्रेम की पराकाष्ठ है ..

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  2. बेहतरीन और लाजवाब शेर।

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