तुमसे बिछड़कर परेशा किस कदर हैं ज़िन्दगी,
एक सेज़ थी कभी,अब दरबदर हैं ज़िन्दगी,
एक सेज़ थी कभी,अब दरबदर हैं ज़िन्दगी,
किशी आँख में ख्वाब सी जो सोती थी,
हर सुकून से वो बेअसर हैं ज़िन्दगी,
हर सुकून से वो बेअसर हैं ज़िन्दगी,
कुछ एक साये तो ज़िंदा मैनें भी देखे हैं,
तुमने देखी हैं मगर किसके घर हैं ज़िन्दगी,
अपनी कमजर्फी से अब सिख रहे हो,
मैने पहले कहा था एक सफर हैं ज़िन्दगी,
छोड़ कर वो घर चौबारे कितना पछताया हूँ,
शहर के रेता बजरी ईंट और पत्थर हैं ज़िन्दगी,
वक़्त युही गुज़रता हैं जैसे गुज़र गया
यार फकत मुट्ठी भर हैं ज़िन्दगी,
गाँव के ग्वालन में सारी दुनियां हमारी हैं,
भोर भई मंदिर की घंटी औऱ मुरलीधर हैं ज़िन्दगी,
बुलंदियों की चाहत या हो आसमा की ख़्वाहिश
मगर जिसके पाव में जमीन हैं उसीके सर हैं ज़िन्दगी...!!!
जी आभार
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