जुल्फ ए फरेब में जंजीर ढूंढता हैं
बहुत नादान हैं ख्वाबो की तासीर ढूंढता हैं
गले भी मिलता है,रोजे भी रखता हैं
मगर कौन गरीब ईद में तकदीर ढूंढता हैं
तू क्यों परेशा हैं जमाने की बेरुखी से
यही ग़ालिब का भी मसला था यही मीर ढूंढता हैं
मुह बनाते हो,बगल से भी नही जाते
गरीब का बच्चा उसी कचड़े में अपनी तकदीर ढूंढता हैं
सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद।
ReplyDeleteBahut badhiya
ReplyDeleteशुक्रिया..
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