Friday 12 August 2022

मेरी गली में वो चाँद जलवानुमा सा है..,








तेरी यादो का कुछ धुँवा सा हैं,
मेरी गली में वो चाँद जलवानुमा सा है,

आँखे जैसे सूरज की पहली किरण,
तेरा चेहरा जैसा दुवा सा हैं,

नदिया गिरती रही मौजे जुड़ती रही,
बोझ वही अब भी दिल पे धरा सा है


दिन निकलता हैं ना कालिया खिलती है,
चंद रोज़ से वो शोख़ खफ़ा सा है....


2 comments:

  1. बहुत सुंदर सृजन।
    सादर

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 17 अगस्त 2022 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
    अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।

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