Tuesday, 17 June 2014

ख़त में दबाकर गुलाब भेजा हैं

उसने सारे शिकवो का जवाब भेजा हैं
ख़त में दबाकर गुलाब भेजा हैं
मेरे बगैर कैसे बीते हैं सुबह शाम
सूखे पत्तो में सारा हिसाब भेजा हैं
एक एक जब्ज में क़यामत बयान होती हैं
चंद पन्नो में मोहब्बत का किताब भेजा हैं
बहुत भटका हु अंधेरो मैं तमाम उम्र
लिफाफे मैं दबाकर आज आफ़्ताभ भेजा हैं

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