मेरा इश्क़ तेरी बंदगी से बड़के हैं
जैसे राधा का रिश्ता रुक्मणी से बड़के हैं
मूर्छित हुआ जिसने प्रेम का अपमान किया
लछमन का क्रोध कब श्रद्धा सबरी से बड़के हैं
मेरे लबो से मिश्री अबतक घुली नही
अल्लाह उसके होठ चासनी से बड़के हैं
तेरे रुखसार पर एक बेचैनी तराशता देती हैंँ
मेरी नज़र भी जोहरी से बड़के है
ं
तेरे शहर की रौनक शामें तु ही संभाल
मेरे खेत का कलेवा तेरी दाल मखनी से बड़के हैं
एक बार पुन: अच्छी रचना हम सबको देने के लिए बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteमेरा इश्क़ तेरी बंदगी से बड़के हैं
ReplyDeleteजैसे राधा का रिश्ता रुक्मणी से बड़के हैं
लाजबाव...........
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