राह विरान,दिल परेशान,पलके भिगोने को हैं,
हालात से हारकर उम्मीद फिर रोने को हैं.
रास्ते सख्त हैं,मुश्किल बड़ा वक़्त हैं,
ज़िन्दगी पाव खीच कर कफ़न बिछौने को हैं.
टूटती सांस,बेचैन धड़कने खामोश,
ताकते पस्त, हौसले भी कोने को हैं.
एक ही तशवीर में, क्या क्या दिखा दिया
रौशनी से भागकर आँख बस सोने को हैं.
कहा जाऊ किससे मिलू किससे बात करुँ,
ज़िन्दगी एक सी बोझ शामो सहर ढोने को हैं
तेरी सिसकियो में मैंने सब पढ़ लिया
बात जो ना सुनी जो ना किसीसे कहने को हैं
सारे अरमान किताबो मैं दबके मर गए,
हमभी अपना वज़ूद पन्नों में कही खोने को हैं....
हालात से हारकर उम्मीद फिर रोने को हैं.
रास्ते सख्त हैं,मुश्किल बड़ा वक़्त हैं,
ज़िन्दगी पाव खीच कर कफ़न बिछौने को हैं.
टूटती सांस,बेचैन धड़कने खामोश,
ताकते पस्त, हौसले भी कोने को हैं.
एक ही तशवीर में, क्या क्या दिखा दिया
रौशनी से भागकर आँख बस सोने को हैं.
कहा जाऊ किससे मिलू किससे बात करुँ,
ज़िन्दगी एक सी बोझ शामो सहर ढोने को हैं
तेरी सिसकियो में मैंने सब पढ़ लिया
बात जो ना सुनी जो ना किसीसे कहने को हैं
सारे अरमान किताबो मैं दबके मर गए,
हमभी अपना वज़ूद पन्नों में कही खोने को हैं....
सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
ReplyDeleteशुभकामनाएँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
भाई बहुत ही अच्छी रचना। हालात चाहे जितने भी बुरे हों पर उम्मीद का दामन हमें कभी नहीं छोड़ना चाहिए। आखिर उम्मीद पर ही दुनिया कायम है।
ReplyDeleteभाई, बहुत दिन हुए आप मेरे ब्लाग पर नहीं आए।
ReplyDeleteसारे अरमान किताबो मैं दबके मर गए,
ReplyDeleteहमभी अपना वज़ूद पन्नों में कही खोने को हैं....
जिंदगी की किताब बहुत ही बेरहम है ... खुद का वजूद भी नहीं बाकी राहता ... लजवाब शेर ...
कहा जाऊ किससे मिलू किससे बात करुँ,
ReplyDeleteज़िन्दगी एक बोझ सी शामो सहर ढोने को हैं
बहोत खूब जाफर आरोली साहब।
सारे अरमान किताबो मैं दबके मर गए,
ReplyDeleteहमभी अपना वज़ूद पन्नों में कही खोने को हैं....
... लजवाब शेर ...