बैठ के सुबह शाम को,मैं लिखता रहा ,
ख़त एक अन्जान को मैं लिखता रहा .
ख़त एक अन्जान को मैं लिखता रहा .
नीद कम आंख नम होने लगी ,
फिर भी ख्याल गुमनाम को मैं लिखता रहा ....
फिर भी ख्याल गुमनाम को मैं लिखता रहा ....
और भी शै हैं मैंने जाना नही,
सिर्फ तेरी मुस्कान को मैं लिखता रहा ...
सिर्फ तेरी मुस्कान को मैं लिखता रहा ...
जब जब तुमको देखा सोचा किया ,
एक नज़्म तेरे सलाम को मैं लिखता रहा ...
एक नज़्म तेरे सलाम को मैं लिखता रहा ...
हाले दिल तो कुछ तुमसे कह ना सका ,
ख़त में अपनी जुबान को मैं लिखता रहा ...
ख़त में अपनी जुबान को मैं लिखता रहा ...
लाश में मेरी जिन्दा तू रह गयी,
बात ये रोज़,शमशान को मैं लिखता रहा ...
बात ये रोज़,शमशान को मैं लिखता रहा ...
अंजाम मोहब्बत का नज़र आ रहा ,
जाने क्यों मौत के सामान को मैं लिखता रहा ...
जाने क्यों मौत के सामान को मैं लिखता रहा ...
चित्र गूगल आभार
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