जो तेरा ज़िक्र मेरी जुबान पे हैं
चाँदनी नीली रात फिर उफ़ान पे है .. . !!!
एक बार जो वो गुलबदन गुज़रा था यां से,
उसकी खुशबु कबसे मेरे मकान पे है ,
आज फ़िर वो सज सवर के घर से निकला हैं ,
आज फ़िर मेरा सब्र इम्तेहान पे है ,
काश के वो थाम ले आकर मुझ को,
मेरी निग़ाह कबसे इस एहसान पे है,
तीखे नैन,काजल चढ़ा के नज़र मिलाते हैं,
सम्भालो दीवानो तीर कमान पे है,
फ़क़द एक दो रोज़ का जिक्र नहीं,
ये मुसीबत तो मेरे जिस्मोजांन पे है,
गाँव में चाँद ने करवट बदली होगी ,
बेचैनी मेरी क्यों ये परवान पे है ,
मिलकर निगाह ,फेर लेता है,
कितना खुश वो अपनी शान से है,
तुझे देखकर कभी-कभी यु भी महसूंस हुआ,
शायद मेरी नज़र आसमान पे है....... !!!
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
११ फरवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जी बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteवाह बहुत गजब हर शेर ।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर शेर |लाजबाब
ReplyDeleteसादर
बहुत सुंदर ,लाजबाब ग़ज़ल ,सादर नमस्कार
ReplyDeleteबहुत खूब........आदरणीय
ReplyDelete