Sunday, 5 December 2021

ज़िन्दगी कही भी रही उसी की रही...









 एक कमी उम्र भर मुझी में रही,

ज़िन्दगी कही भी रही उसी की रही,


तुम इतना हक़ मुझपर जाहिर ना करो,

मैं अब भी उसी का हूँ जो मेरी कभी नही रही,



झिझक इज़हार के रास्ते आ गयी

बरहाल बर्फ़ रिश्तो मैं जमी ही रही,


वक़्त के साथ नये राब्ते परत दर चढ़ते रहे,

वो एक मोहब्बत दिल में कही दबी ही रही,


अंजुमन में फूल खिलते रहे,बहार आती रही,

फ़िज़ा उसे रही जिसे मोहब्बत ना रही,

8 comments:

  1. वक़्त के साथ नये राब्ते परत दर चढ़ते रहे,

    वो एक मोहब्बत दिल में कही दबी ही रही... वाह!गज़ब लिखतें हैं आप।
    हृदयस्पर्शी।
    सादर

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार
    (6-12-21) को
    तुमसे ही मेरा घर-घर है" (चर्चा अंक4270)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  3. वक़्त के साथ नये राब्ते परत दर चढ़ते रहे,
    वो एक मोहब्बत दिल में कही दबी ही रही,
    भावनाओं से ओतप्रोत बहुत ही सुंदर व हृदयस्पर्शी रचना

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  4. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 07 दिसम्बर 2021 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. तुम इतना हक़ मुझपर जाहिर ना करो,

    मैं अब भी उसी का हूँ जो मेरी कभी नही रही.. मर्म स्पर्शी सृजन ।

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  6. ज़िंदगी मिल मिल कर भी अनजानी बनी रहती है और एक दिन मौत का बुलावा आ जाता है

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  7. उम्दा अभिव्यक्ति, हृदय स्पर्शी सृजन।
    बहुत सुंदर।

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  8. उम्दा शेर हैं सभी ...
    लाजवाब गज़ल ..

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