एक कमी उम्र भर मुझी में रही,
ज़िन्दगी कही भी रही उसी की रही,
तुम इतना हक़ मुझपर जाहिर ना करो,
मैं अब भी उसी का हूँ जो मेरी कभी नही रही,
झिझक इज़हार के रास्ते आ गयी
बरहाल बर्फ़ रिश्तो मैं जमी ही रही,
वक़्त के साथ नये राब्ते परत दर चढ़ते रहे,
वो एक मोहब्बत दिल में कही दबी ही रही,
अंजुमन में फूल खिलते रहे,बहार आती रही,
फ़िज़ा उसे रही जिसे मोहब्बत ना रही,
वक़्त के साथ नये राब्ते परत दर चढ़ते रहे,
ReplyDeleteवो एक मोहब्बत दिल में कही दबी ही रही... वाह!गज़ब लिखतें हैं आप।
हृदयस्पर्शी।
सादर
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार
(6-12-21) को
तुमसे ही मेरा घर-घर है" (चर्चा अंक4270)
पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
वक़्त के साथ नये राब्ते परत दर चढ़ते रहे,
ReplyDeleteवो एक मोहब्बत दिल में कही दबी ही रही,
भावनाओं से ओतप्रोत बहुत ही सुंदर व हृदयस्पर्शी रचना
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 07 दिसम्बर 2021 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteतुम इतना हक़ मुझपर जाहिर ना करो,
मैं अब भी उसी का हूँ जो मेरी कभी नही रही.. मर्म स्पर्शी सृजन ।
ज़िंदगी मिल मिल कर भी अनजानी बनी रहती है और एक दिन मौत का बुलावा आ जाता है
ReplyDeleteउम्दा अभिव्यक्ति, हृदय स्पर्शी सृजन।
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
उम्दा शेर हैं सभी ...
ReplyDeleteलाजवाब गज़ल ..