कोई रोशनी कोई सितारा नज़र नही आता,
इस रात का कोई किनारा नज़र नही आता,
ना चाँद की थी ख़्वाहिश ना बहारों के सपने,
दो क़दम साथ चलने ही का सहारा नज़र नही आता,
क्यो दिखेंगे तुम्हे छाले,ग़रीब पावों के,
तुम शहद चाहते हो तुम्हे खारा नज़र नही आता,
बात भी करते गले भी लगाते हमे कभी,
जरा सी बात में कोई ख़सारा नज़र नही आता,
मज़बूरियों की गोद में सो गये अरमान कितने,
हमारे अंदर कोई अब हमारा नज़र नही आता,
हमारी बग़ल से देखोगे तो दिखेगा सच,
जहाँ से तुम देखते हो वहाँ से सारा नज़र नही आता,
बहुत खूब जफ़र जी | बहुत दिनों बाद आपका ब्लॉग मेरी रीडिंग लिस्ट नज़र आया |और उसमें भी आपकी ये मधुर रचना , पढ़कर बहुत अच्छा लगा | हर शेर शानदार है |------------------
ReplyDeleteक्यो दिखेंगे तुम्हे छाले,ग़रीब पावों के,
तुम शहद चाहते हो तुम्हे खारा नज़र नही आता!!!!
हार्दिक शुभकामनाएं आपको |
कृपया टंकण अशुद्धियों का अवलोकन जरुर करें |
ReplyDeleteजी जरूर।
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(19-12-21) को "खुद की ही जलधार बनो तुम" (चर्चा अंक4283)पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
बहुत सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteडॉ सुनील के जफर जी, बहुत सुंदर सृजन!--ब्रजेंद्रनाथ
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