साथ में तुझमें-मुझमें ही सब है
ज़बक़े अलग-अलग हम कितने अलग है,
सुबह एक ही रंग में रगीं है
शामें सब एक आग़ोश में ढकीं है
एक ही ख़्वाब सजाते है
एक उम्मीद पे जिये जाते है
पसंद नापसंद सब एक हो जाती है
साँसे एक ही धुन गुनगुनातीं है
एक ही रस्क एक ही तलब है
ज़बक़े अलग-अलग हम कितने अलग है
एक परिवेश से तुम आती हो
एक मेरा घर परिवार है
मेरे पापा की नौकरी है
तुम्हारे खानदान का व्यापार है
तुमको चाय में चीनी पसंद है
मैं खाने में नमक कम खाता हूँ
तुम सुबह जल्दी उठती हो
मैं देर से नहाता हूँ
तुम को पुराने नग़मे पसंद है
मैं ग़ज़लें गुनग़ुनाता हूँ
फिर भी जब हम साथ होते है
कितने जुड़े अपने जज्बात होते है
तेरी हर बात पे मेरी
मेरी हर बात पर तेरी ही झलक है
ज़बक़े अलग-अलग हम कितने अलग है.
आभार स्वेता जी🙏
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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