Saturday, 27 October 2018

बर्तन माझती कुम्हारिन के हुस्न पर ग़रीबी हावी हैं..!!!






किसी की आँख  हैं पीली किसीकी आँखे गुलाबी हैं,
बर्तन माझती कुम्हारिन के हुस्न पर ग़रीबी हावी हैं..!!!


प्रेम की दीपक तुमने हज़ारो किताबो में जला रखे,
मुफलिशी और भूख को मैंने कलाम अपनी चढ़ादी हैं,

तुम खुश हो तुम्हारी नीतियों भीड़ इतनी जुटा दी हैं
ये भोली जनता तो बस हेलीकाप्टर देखने आती हैं,

हम कलेजे से लगाते हैं वो सिर चढ़ के आता हैं,
मंत्री जी की जेब में ख़तरे में अपनी आजादी हैं,

ना कोई आराम देखा,पूड़िया दवाई की नही खायीं,
उस चूल्हे की रोटी,मिट्टी के घरों में ताक़त फ़ौलादी हैं,

हाँथों मे मज़दूरी के छाले हैं जुबा पे मज़बूरी के ताले हैं,
तुम्हारे कारखानों में,कितनी जवानी हमने दबा दी हैं,

पाप था पिछले जन्म का चमहारिन की कोख ने जना था,
वरना इन मासूम बच्चे ने  ख़ाक कोई खता की हैं,

उसी डाल पर थी कोयल जिसपर फाँसी पे छुला था,
तुम्हें खबर मेरी मौत की भी मिठी सुनाई दी हैं,

मेरे हाथ हथोड़े हैं मेरे घर में सुकून की नींद आती हैं,
शहर में नींदे  भी तुमने दवा के भरोसे लुटा दी हैं,

मैं पाँव जो छू लू उसके वो माथा चुम लेता हैं,
इतनी तहज़ीब तो जफ़र मेरे गाँव के बुज़ुर्गो में बाक़ी हैं...!!!

Saturday, 20 October 2018

वजह की ज़िद में ज़िन्दगी का मज़ा नही ले पायेगा......!!!




ज़ुनून जब तेरा हद से गुज़र जाएगा,
वजह मे फसेगा तो सारा खेल बिगड़ जायेगा,


इस कसमकश की वजह भी तभी जान पायेगा,
दुनिया की तमाम वजहों से जब फ़रिक हो जायेगा,

बारिशो में भीग कर देख,तेज़ धूम में घूमकर आ,
वजह की ज़िद में ज़िन्दगी का मज़ा नही ले पायेगा,

ये हालात तेरे ही फैसलों के हासिल हैं,
बेवजह,वजह की बहस के पीछे कबतक चेहरा छुपायेगा,

इतनी प्यास हैं कि अब बुझाने से डरता हूँ,
नकाब उठ गया तो तस्व्वुर कमज़ोर पड़ जायेगा,

ताब को इस क़दर दीवानों ने खुदा कर दिया,
एक बार गले लगा ले चालीस पचास बरस तो कट जायेगा,

बैठ कर कई रात मैं इस फ़लसफ़े को गूँधता रहा,
सुन अब वो किस्सा तुझे भी यक़ीन नही आयेगा,

गुप अंधेरा होगा,रास्ता भी रास्ते से हट जयेगा,
सब्र रखना तुझे सच तब ही नज़र आएगा,

जिदों की कोख़ में दूरियों के समुन्दर हैं,
सोच समझ कर अकड़ना वरना बहुत पछतायेगा,

चाँद जब  बाहों से उतरकर,दुनियादारी में खो जयेगा
जमी का बोझ सारा तेरे क़दमो में आ जायेगा,

पत्थर पिघल कर रास्ता दिखायेगा,आसमा खुल जायेगा,
कोई मीरा को जब जब जहर का घूट पिलायेगा....!!!

Monday, 15 October 2018

कितने राज कल रात दफ़न हो गये....







सारी शिकायते सारे शिक़वे ख़त्म हो गये,
कितने राज कल रात दफ़न हो गये,


बड़े बेक़रार लोग भटकते रहे थे कई रोज़,
सारे मसाइल मसले लिपट कर कफ़न हो गये,

हज़ार बार की मिन्नतों से जो भी अब नही पिघलते,
हम तुम बिछड़कर कितने सख्त हो गये,

दुःख तकलीफ़ मज़बूरी किसीकी नही दिखती,
भीड़ के जुनून में लोग इतने मगन हो गये,

झूठी खुशी और नकाबपोशों की ये महफ़िल हैं
अमीरे शहर के फ़ीके हर जश्न हो गये,

हाथ में फूल लेके अब कोई नही आता,
इस शहर में बस नफरतो के स्वपन हो गये,

जबके दिल तो बेरंग उदास हुए जाता हैं
जुदा हुए तो कितनी जल्दी रंगीन ये बदन हो गये,

पहली नवरात सुबह छत पे बाल सुखाते दिख गयी,
हमे भी अपने खुदा के दर्शन हो गये,

कितनी सिद्दत से जिस इश्क़ को हमने जवान किया,
तुम यू बदले की वो किस्से अब बचपन हो गये,

लोग बाज़ारो दरगाहों पे इशारो से जफ़र दिखाते हैं,
ऐसे बर्बाद हुये की शहर भर को उदाहरण हो गये...!!!

Wednesday, 10 October 2018

मुझसे हो नही पाया तुम कर नही सकते.....








जख्म ये उम्र भर तुम भर नही सकते
मुझसे हो नही पाया तुम कर नही सकते,


छोड़ कर हाथ,तुमने दरिया मोड़ तो दिया हैं
डूब तो सकते हो तुम इसमे तर नही सकते,

कुछ हौसला कुछ हिम्मते तुमभी दिखानी होगी,
हर बार तो श्रीकृष्ण अंगुली पे गोवर्धन धर नही सकते,

हुस्न जब बेवफा हो जाय तो मासूमियत खो ही देता हैं,
उस सादगी से तुम आँख में काजल कर नही सकते ,

हो जब दिल में दरिया तो आँख में छीटे आ ही जाने हैं,
कुदरत के उसूलो से इतना भी तुम लड़ नही सकते,

जैसे एक उम्र हमने साथमे एक ही दास्तान लिखी थी
इस तस्सवुर से किसी की मोहब्बत में तुम पड़ नही सकते,

जो कमसिन उम्र ने बड़ी नज़ाकत से फूल खिलाया था
फरिश्ते भी उसे अब लेकर वापस कर नही सकते,


सौ कोशिस करो हज़ार गले लगाओ लाख उम्मीद पालो,
मिल तो सकते हैं हम,जानेमन अब जुड़ नही सकते,

Saturday, 6 October 2018

धूर्त ही बिसात हो तो ,हौसले कैसे बरकरार रखे....!!!





कौरवो संग चौसर में कैसे धर्म को साध रखे
धूर्त ही बिसात हो तो ,हौसले कैसे बरकरार रखे,

माना आखेट के जंगल में चीख़ों का चक्रव्यूह भी हैं,
आँख ही न मींच ले तो कैसे जीवित स्वमं को व्याध रखें,

बस क्षण भर बिगुल ठहरा जरा मंत्रणा कर सकूँ
शीश तुम्हारे जो ना काट दे तो क्या खुद कंठ धार रखें,

गर मैं जो उठ खड़ा हुआँ,खेल सब दूंगा तुम्हारे उलट
धमनियों में रक्त के अश्व,जाने किस विधि बांध रखें,

बुझ जाती हैं जब चिता की आग भी सब स्वाहा करके,
किसी के लौटने की आस कोई कैसे आबाद रखें,

ये सन्नाटा और सूनापन एक दूरी जग से सहेज ली है,
जब नही निकट कोई क्या परस्पर संबंधों में गांठ रखे,

नीति नैतिकता सब बदल गये,कलयुगी विधान में,
अधर्म ही जब श्रेष्ठ हैं तो क्यो व्यर्थ क्षत्रीय तलवार रखें,

Friday, 5 October 2018

मुझसे यकीन बनकर तू लिपट क्यो नही जाता.....





ये ग़म का साग़र छलक क्यो नही जाता,
जाते जाते वो पलट क्यो नही जाता...


आँखों में तैरता हैं जो बदली बनकर,
उफान में टूटकर बाहों मैं बरस क्यो नही जाता,

हौसले अपने पानी चौमास से उफनते है,
वो रस्मो बंधिसो केे रास्ते से हट क्यो नही जाता,

मेरी रग-रग में तू ज़िन्दगी बनकर मौज़ूद हैं,
तुझे भुलाना है तो ये सिर कट क्यों नही जाता,

गर सचमे तुझे ख़ौफ हैं बेरहम आँधियों का,
मुझसे यकीन बनकर तू लिपट क्यो नही जाता,

वो मोहब्बत वो गर्म लहज़ा बाकी हैं अभी,
ये आँगन भाईयो के हिस्से बट क्यों नही जाता,

पैगामे उल्फ़त को दिल से लगा के रखते हैं सुबह-शाम ,
ये काग़ज़ का टुकड़ा जफ़र फट क्यों नही जाता....!!