Saturday, 6 October 2018

धूर्त ही बिसात हो तो ,हौसले कैसे बरकरार रखे....!!!





कौरवो संग चौसर में कैसे धर्म को साध रखे
धूर्त ही बिसात हो तो ,हौसले कैसे बरकरार रखे,

माना आखेट के जंगल में चीख़ों का चक्रव्यूह भी हैं,
आँख ही न मींच ले तो कैसे जीवित स्वमं को व्याध रखें,

बस क्षण भर बिगुल ठहरा जरा मंत्रणा कर सकूँ
शीश तुम्हारे जो ना काट दे तो क्या खुद कंठ धार रखें,

गर मैं जो उठ खड़ा हुआँ,खेल सब दूंगा तुम्हारे उलट
धमनियों में रक्त के अश्व,जाने किस विधि बांध रखें,

बुझ जाती हैं जब चिता की आग भी सब स्वाहा करके,
किसी के लौटने की आस कोई कैसे आबाद रखें,

ये सन्नाटा और सूनापन एक दूरी जग से सहेज ली है,
जब नही निकट कोई क्या परस्पर संबंधों में गांठ रखे,

नीति नैतिकता सब बदल गये,कलयुगी विधान में,
अधर्म ही जब श्रेष्ठ हैं तो क्यो व्यर्थ क्षत्रीय तलवार रखें,

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