Wednesday, 30 January 2019

सारे फ़रिश्ते घबरा जल्दी घर लौट आये हैं....






सारे फ़रिश्ते घबरा जल्दी घर लौट आये हैं,
रात काली हैं या चाँद ने अंधेरे बिछायें हैं,


कुछ मग़रूरओ  के हौसले इतने बुलंद हैं,
रोशनी के डर से कितने सूरज बुझाये हैं,

खेत मेरे ,दो बूंद पानी को तरसते रहे,
शेयर बाज़ार से आप कौनसी अच्छी ख़बर लाये हैं,

बदन से आज भी मिटटी की भीनी बू नही जाती,
कई बार किसान तुम्हारे जुठ वादों में नहायें हैं,

कोई साज़िस तुम्ही ने अलबत्ता करी होगी,
जबकी सारे खंज़र हमने ख़ुद ही दफ़नाये हैं,

वतन पे मेरे भीड़  का जुनून हावी है,
इलेक्शन से ये फ़सल काट के लाये हैँ,

तेरे आगे बस मेरा वश नही चलता,
शिकायत तुझे हैं मुझे बस इल्तिजाये हैं,

तुम्ही ने अंधेरों में मुझें बरसों बरस धकेल दिया,
हमने अपनी किताबो में कई चिराग़ दबायें हैं...

3 comments:

  1. Amazing collections. keep posting

    Quotes

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  2. वाह !!बहुत ख़ूब
    सादर

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  3. ये क्या सोचेंगे ? वो क्या सोचेंगे ?
    दुनिया क्या सोचेगी ?
    इससे ऊपर उठकर कुछ सोच, जिन्दगीं सुकून
    का दूसरा नाम नहीं है
    kaka ki shayari

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