यहाँ हरेक सुहागिन का बदस्तूर हलाला निकलता हैं,
दून से दवरा पहुचते परियोजना का दिवाला निकलता हैं,
कौन सा दामन पाक हैं किन हाथों पे क़लम रखूँ ,
मदो की बंदरबाट में हर चेहरा काला निकलता हैं,
पारदर्शिता और सत्यनिष्ठा की कितने घुट्टिया पी गये,
फिर भी हर फ़ाइल में हमारे लिए मसाला निकलता हैं,
रिबन काटने फ़ोटो खिंचाने की बस ये भीड़ हैं,
मंत्री जी के जाने भर से पंचायतघर का ताला निकलता हैं,
इन पहाड़ो पर आर्मी के एहसान बहुत रहे हैं,
रोजग़ार को हर बरस सिर्फ भर्ती का हवाला निकलता हैं,
अपनी जवानी तो हम शहर की चिमनियों में फूक आये,
बस बुढ़ापे में वापस घर को पहाड़ वाला निकलता हैं,
एक और जाँच,एक और मुह नोटों को,खुल जाएगा,
फ़क़द अंधेरे ही फैलाने को यहाँ उजाला निकलता हैं,
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