Sunday, 1 February 2015

बदनसीब आँखों ने दुनिया बेइंतेहा देखी..

हसी पनाह देखी दर्द भरी आह देखी
बदनसीब आँखों ने दुनिया बेइंतेहा देखी..

रातभर अपने अपने हिस्से के बिस्तर में सिमटते रहे
देखने वालो ने हमारी दुरिया कहा देखी.

फकद मुर्दो की भीड़ में कैद हैं ज़िन्दगी
आज के इंसा ने आदमियत कहा देखी.

तेरे मेरे दरमियान फासले लाज़मी थे
तूने अपनी ज़रूरते देखी हमने तेरी जुबा देखी

बड़े सलीके से उसने दुनियादारी पहन ली
वही सूरत हमने तो हर जगह देखी

हुस्न लैला ने मजनू को किया बदनाम
इश्क़ मीरा जिसने जहर मैं भी दवा देखी

5 comments:

  1. बदनसीब आंखों ने दुनिया बेइंतिहा देखी। बहुत ही मार्मिक कविता। जफर साहब कविता प्रस्‍तुत करने का बहुत बहुत शुक्रिया। http://natkhatkahani.blogspot.com

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  2. सुन्दर प्रस्तुति !
    आज आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा अप्पकी रचनाओ को पढ़कर !!

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  3. हुस्न लैला ने मजनू को किया बदनाम
    इश्क़ मीरा जिसने जहर मैं भी दवा देखी ...
    वाह बहुत बारीकी से हुस्न और इश्क के फर्क को रखा है ... लाजवाब शेर हैं इस ग़ज़ल को ...

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  4. बहुत बहुत शुक्रिया...
    आपको मेरी रचना पसंद आयी...

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