एक उम्र हम इसी कफ़स में थे,
जबसे हम तेरी हिफ़ज़ में थे.
सारा शहर रुख़सार का था कायल,
तुम कब मेरे वश में थे .
खुशिया तमाम गुलाम थी
कुछ फ़रिश्ते मेरी गिरफ्त में थे .
चाँद मेरे हदो में था
परवाने कभी अपनी जब्त में थे
दौरे तन्हाई दर्दे इश्क़ दिखावा हैं
कितने मज़े तुमसे शिख्शत में थे
उतनी ताकत तुम्हारे जुल्म में कहा थी
जितने हौसले जिदे बेबस में थे
कुछ कहना उस वक़्त फ़िज़ूल था
जाते हुए तुम दौलत की हवस में थे
जबसे हम तेरी हिफ़ज़ में थे.
सारा शहर रुख़सार का था कायल,
तुम कब मेरे वश में थे .
खुशिया तमाम गुलाम थी
कुछ फ़रिश्ते मेरी गिरफ्त में थे .
चाँद मेरे हदो में था
परवाने कभी अपनी जब्त में थे
दौरे तन्हाई दर्दे इश्क़ दिखावा हैं
कितने मज़े तुमसे शिख्शत में थे
उतनी ताकत तुम्हारे जुल्म में कहा थी
जितने हौसले जिदे बेबस में थे
कुछ कहना उस वक़्त फ़िज़ूल था
जाते हुए तुम दौलत की हवस में थे
उतनी ताकत तुम्हारे जुल्म में कहा थी
ReplyDeleteजितने हौसले जिदे बेबस में थे
सुंदर पंक्तियाँ।
वाह, क्या बात है। बहुत ही सशक्त लेखन की प्रतीक रचना है।
ReplyDeleteखुशिया तमाम गुलाम थी
ReplyDeleteकुछ फ़रिश्ते मेरी गिरफ्त में थे .
.........वाह...दिल को छूते अहसास...बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...
वाह क्या बात है दौलत की हवस आसानी से नहीं जाती ...
ReplyDeleteलाजवाब ग़ज़ल ...