Thursday, 17 July 2014

पलकों में दबा कर एक आंसुओ का सैलाब रखा हैं

पलकों में दबा कर आँसुओ का सैलाब रखा हैं
दुनिया से छुपा कर अबतक तेरा ख्वाब रखा हैं

आहिस्ता आहिस्ता ही समझ में आऊँगा
अपनी शख्शियत पे बड़ा मेहराब रखा हैं,

हमने तो मोहब्बत बेइन्तहा की थी,
उन्होंने नफरतो का ही हिसाब रखा हैं,

घर से निकल कर जाऊ तो किस तरफ
अपनी दुनिया को ख़ुद ही उजाड़ रखा है,

हमने उनके जुल्म भी भुला दिए
उन्होंने हमारी नादानी को भी याद रखा हैं

लौट के शहर से ग़ाव जाने से डरता हूँ
भाइयो ने आँगन को इतना बाट रखा हैं

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