दर्द में डूब कर बिखर गया होता
तुम पनाह न देते किधर गया होता
तेरे आखिरी मेसेज ने रोक ली साँसे
सूरत पे यकी करता तो मर गया होता
मुज़बुरिया क्या हैं पता चल जाता
तू एक बार जो मेरे हालात से गुज़र गया होता
हर बार वही फरेब हैं मिरे नसीब में
गोया कोई तजुर्बा तो मुख़्तसर गया होता
तुम पनाह न देते किधर गया होता
तेरे आखिरी मेसेज ने रोक ली साँसे
सूरत पे यकी करता तो मर गया होता
मुज़बुरिया क्या हैं पता चल जाता
तू एक बार जो मेरे हालात से गुज़र गया होता
हर बार वही फरेब हैं मिरे नसीब में
गोया कोई तजुर्बा तो मुख़्तसर गया होता
वाह ... मुसलसल ग़ज़ल है ...
ReplyDeleteWelcome and thanks...
ReplyDeleteGood work...
ReplyDeleteवाह,क्या बात है। शानदार गज़ल है।
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