Thursday, 31 July 2014

ये सब मेरी मज़बूरी हैं......





ये संगदिली बेरहमी सब मेरी मज़बूरी हैं,
आग जिन्दा रखने को चिंगारी जरुरी हैं,

एक रोज़ पत्थर पिघलेगे सितारे बरसेगे
रुखसार मेरा बेरंग सही हलक बहुत कस्तूरी हैं,

उन्ही का निकाह झूठा निबाह फरेबी हैं
जिनकी आंखे सच्ची मग़र माथा सिंदूरी हैं,

अल्लाह अब ये कैसी मेरी मज़बूरी हैं
उसकी जुबा कटारी और आंखे बहुत अंगूरी हैं,

बस एक आह मेंरी,कदम तेरे लौट जायेगे
आज भी अपने बीच जाना फ़कद इतनी दूरी हैं,

तुम मुझे मिले नही गले कोई क्या लगे
ईदी मुझे मिली नही ईद मेरी अधूरी हैं,

जो भी था कभी,धीरे धीरे जाया हुआ
कहना सुनाना तो जफ़र बस दस्तूरी हैं,
आग जिन्दा रखने को चिंगारी जरुरी हैं....

1 comment:

  1. तुम मुझे मिले नही गले कोई क्या लगे
    ईदी मुझे मिली नही ईद मेरी अधूरी हैं ..
    प्रेम की चाह कभी पूरी तो कभी अधूरी ... बहुत उम्दा शेर ...

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